इंसान की मृत्यु क्यों होती है? क्या मौत पहले से ही निश्चित होती है? जानिए सच्चाई तो दोस्तों आपके मन में यह बात बार-बार आ रही होगी कि मृत्यु क्यों होती है? क्या मौत पहले से ही निश्चित होती है? आखिर यह जन्म - मृत्यु का चक्र निरंतर क्यों चलता रहता है।
इंसान की मृत्यु क्यों होती है? क्या मौत पहले से ही निश्चित होती है?
दोस्तों पुराने जमाने में एक गांव में एक विधवा रहती थी, उसका सहारा उसका 10 साल का बेटा था, औरत दूसरों के घरों में काम करती थी, अपने बेटे की परवरिश करती थी और अपना समय बिताती थी।
एक दिन उनके बेटे को जहरीले सांप ने काट लिया, जिससे उसके बेटे की मौत हो गई। तो उसी समय उस सांप को एक बहेलिया ने देख लिया, फिर उसी समय वह बहेलिया उस सांप को पकड़ लेता है।
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और उस सांप को लेकर उस महिला के पास आता है और कहता है कि देवी, इसने तुम्हारे बेटे को काटकर मार डाला है। महिला अपने बेटे के शव पर आती है और सिर पीट-पीटकर रोने लगती है।
बहेलिया महिला से कहता है कि सांप ने तुम्हारे बेटे को काट लिया है इसलिए आप इस सांप को अपने हाथों से मारो, लेकिन महिला कहती है कि मेरा बेटा इस सांप को मारने से जीवित नहीं होगा, तो उसे मारने से क्या फायदा?
वह बहेलिया बार-बार महिला को पहेलियां समझाता है कि दुश्मन को मारने से आपका शोक कम हो जाएगा, इसलिए आप इस सांप को मार दें लेकिन वह महिला सांप को मारने से इंकार कर देती है।
यह सब देखकर सांप बहेलिया से कहता है कि भाई इसमें मेरा क्या कसूर है? कि तुम चाहते हो कि मैं बेवजह मर जाऊं, मैंने इसे अपनी इच्छा या क्रोध से नहीं काटा है, मुझे इसे काटने के लिए मौत ने प्रेरित किया है।
इसलिए मुझे इस बच्चे को मौत के घाट उतारना पड़ा। इसलिए दोष मेरा नहीं है, दोषी यह मौत है, जब सांप ने मौत का सारा दोष बता दिया, तो मौत उनके सामने प्रकट हुई और कहने लगी।
इस बच्चे की मौत का सारा दोष मुझ पर है, मैंने ही आपको काल की प्रेरणा से प्रेरित किया, इसमें मेरी भी गलती नहीं है। यह सारा संसार काल के अधीन है, इसलिए मैं भी इसके अधीन हूं, मैं अपनी मर्जी से कुछ नहीं करती।
इसलिए न तो मैं और न ही तुम बच्चे को मारने के दोषी हो, वह काल ही दोषी (समय) है जब मृत्यु ने बच्चे की मृत्यु का पूर्ण कारण बता दिया है। तथा सभी आरोप काल (समय) पर लगाए गए।
तो वहाँ काल भी सबके सामने प्रकट हो गया और काल ने उस स्त्री से कहा कि न तो मैं तुम्हारे पुत्र का अपराधी हूँ, न यह मृत्यु न साँप, इस बालक की मृत्यु का कारण इस बालक का कर्म है।
पिछले जन्म में किए गए कर्मों से ही हर प्राणी का नाश होता है, क्योंकि मनुष्य हमेशा अपने कर्मों के अनुसार फल भोगता है। इसलिए यह बालक अपनी ही मृत्यु का दोषी है। हर प्राणी की मौत पहले से ही निश्चित होती है।
हम सबने इस बालक के कर्म के अधीन अपना -२ कर्म किया है, इस प्रकार उस स्त्री के मन से पुत्र की मृत्यु का शोक समाप्त हो गया।
दोस्तों, सच तो यह है कि हमारे साथ जो कुछ भी अच्छा या बुरा होता है, वह हमारे अपने कार्यों के कारण होता है, इसलिए हमें ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे हमें उनका अच्छा परिणाम मिले।
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