Sanjhi Mata ki kahani in Hindi | सांझी माता की कहानी - सांझी कुंवारी कन्याओं की देवी !

Sanjhi Mata ki kahani in Hindi | सांझी माता की कहानी - सांझी कुंवारी कन्याओं की देवी !कौन सी लड़की नहीं चाहती कि एक अच्छा दूल्हा और एक अखंड सुहागरात? शायद इसीलिए राजस्थान, हरियाणा, मालवा, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में अच्छे वर और अखंड सुहागरात की कामना से सांझी माता के श्राद्ध के दिन अविवाहित लड़कियां शाम को इकठ्ठी हो जाती हैं।  

Sanjhi Mata ki kahani in Hindi

वे सांझी के सामने देवताओं के भजन गाती हैं। और कभी-कभी भजन या लोकगीत गाते हुए, वह पड़ोसियों के दरवाजे पर जाती है और उसे प्रदर्शित करती है। उन्हें  पड़ोसियों और गांव के लोगों से पुरस्कार भी मिलता है।

Sanjhi Mata ki kahani in Hindi | सांझी माता की कहानी 

सांझी की प्रथा बहुत पुरानी और लोकप्रिय है। आज हम इसके बारे में बताने जा रहे हैं। इस संबंध में विभिन्न क्षेत्रों की अलग-अलग मान्यताएं हैं। कहीं कहीं उन्हें दुर्गा या पार्वती माता का प्रतीक माना जाता है। तो कहीं-कहीं इन्हें विवाहित ब्राह्मणी माना जाता है। तो कहीं - कहीं आज भी उन्हें अछूत जाति की पुत्री माना जाता है। 

माना जाता है कि सांझी माता की शादी के तुरंत बाद मौत हो गई थी। इसी वजह से सांझी का किसी अछूत जाति की लड़की से संबंध भी हो सकता है। क्योंकि सांझी की प्रथा प्रचलित मान्यता के अनुसार सांझी बाई षोडशी थी। इसलिए अविवाहित कन्याओं की मान्यता है कि भद्रपद की पूर्णिमा से लेकर अश्विन की अमावस्या तक ऐसे संस्कार करते हैं। 

जिनमें 16 दिनों तक प्रतिदिन नई सांझी का चित्र दीवार पर गोबर और पीली मिटटी से उकेरा जाता है। तथा सांझी या संजा माता का श्रृंगार किया जाता है।श्रृंगार में चूड़ी, सिंदूर, फूल, एंव आरती का सभी सामान शामिल होता है। उसके बाद कुँवारी कन्याएं सांझी माता के गीत गाकर माता को मनाती है।  

और अविवाहित लड़कियों के अनुसार सांझी का 1 दिन 1 वर्ष के बराबर होता है। उसके 16 दिन  के बाद, वह पूर्ण यौवन प्राप्त करती है और अपने ससुराल चली जाती है।  सांझी माता का 16 वाँ दिन एंव अंतिम दिन सामूहिक विसर्जन का होता है। इस दिन वह पितृ मूल्य केवल उसी समाज में प्रचलित होता है जिसे अछूत माना जाता है। 

Sanjhi Mata

सांझी बाई कोई भी हो, लेकिन प्रचलित प्रथा के आधार पर यह माना जा सकता है कि उनका व्यक्तित्व जरूर चमत्कारी रहा होगा। जो अपने पिता के घर को छोड़कर अपने पति के घर पर जाती है। 

इस मान्यता के अनुसार जो लड़कियां सांझी को सही तरीके से और पूरे विश्वास के साथ विदा करती हैं उन्हें एक अच्छा वर मिलता है और वे जीवन भर खुश रहती हैं।

FAQs - लोगों द्वारा पूछे जाने वाले सवालों के जवाब

Q - सांझी को किसका रूप मानते हैं?

सांझी को माता दुर्गा  एवं  शिव जी की पत्नी पार्वती माता का रूप मानते हैं।  लेकिन कई कई स्थानों पर सांझी को अछूत जाति की पुत्री माना जाता है। 

Q - संजा माता कौन है? | सांझी का संबंध किस देवी से है ?

वेद पुराणों की मान्यता के अनुसार सांझी को माता दुर्गा का रूप में माना गया है।  सांझी माता को संजा माता भी कहते हैं। 

Q - सांझी का त्योहार कब मनाया जाता है?

सांझी या संजा माता का त्यौहार भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर अश्विन महीने की अमावस्या तक मनाया जाता है।  इसमें कुंवारी कन्याएं शाम होते ही सांझी माता का चित्र गोबर से बनाती हैं। 

Q - सांझी पूजा कितने दिनों तक की जाती है

सांझी माता का यह त्यौहार 16 दिन का होता है।  यह त्यौहार भाद्रपद की  पूर्णिमा से लेकर क्वार महीने की अमावस्या तक मनाया जाता है।  अश्विन महीने की अमावस्या को इसका गांव के पास किसी तालाब या खेतों में विसर्जन किया जाता है। 

Q - सांझी माता क्यों लगाई जाती है?

सांझी माता को कुंवारी कन्याओं की देवी भी कहा जाता है।  कुंवारी कन्याएं अच्छे वर के लिए 16 दिन तक सांझी माता की उपासना  करती हैं।  इतने सांझी माता का चित्र दीवार पर पीली मिट्टी या गोबर से उकेरा जाता है। उसके बाद सांझी  माता का श्रंगार किया जाता है। 

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